खुशी तू कहाँ मिली
ऐ बंदे !
कहाँ ढूंढ रहा खुशी को
मैं तो हूँ तेरे अन्दर
मैं तो हूँ बस एहसास दिलों का
जो हर दिल में प्रेम स्वरूप बसती हूँ
मैं फूलों की मुस्कान में हूँ
माँ की निश्छल ममता में हूँ
कहाँ कर रहा तू मेरी तालाश
मैं तो हूँ तेरे हीं आस-पास
माता-पिता के आशीर्वाद में मैं हूँ
ईश्वर की बंदगी में मैं हूँ
भोले भाले बच्चों की मुस्कुराहट में मैं हीं हूँ
दीन दुखियों की सेवाभाव में मैं हूँ
अतिथियों की सत्कार में मैं हीं हूँ
चिड़ियों की चहचहाहट में मैं हूँ
बारिश में नाचती मोरनी के नाच में मैं हीं हूँ
घर में बजती पायल के झनकार में मैं हूँ
चुरियों की खनखनाहट में मैं हूँ
माँ वसुंधरा के कण कण में मैं हीं तो हूँ
बस हे मानव ! मत भटक तू !
मुझे पहचान ! मेरे मोल को तू जान ।
मधु कुमारी
कटिहार
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