मैं योग को चला
बहुत ही लाड प्यार से
मैं था बढ़ा और पला
न थी फिक्र कोई भी
न कुछ पाने की बला।
जैसे-जैसे यह उम्र बढ़ती गई
चाहतों का पहाड़ बनता गया
पूरी करने की जद्दोजहद में
मुसीबतों से मैं जूझ सा गया।
पैरों में होने लगी जकड़न
बाधाएं करने लगी अड़चन
रास्ते में मुझे हकीम मिला
दिया उसने योग की सिला।
मैंने भी उसपे ऐतमाद किया
थोड़ा नुस्खे का प्रयोग किया
सुबह थोड़ा जल्दी उठकर
मैं नित्य व्यायाम को चला।
नित्य योग और व्यायाम से
जकड़न से मैं आराम पाया
अब मैंने इस व्यायाम को
दिनचर्या में शुमार किया।
व्यायाम करके है मैंने पाया
अपनी बीमारियों से निजात
व्यायाम से आती है स्फूर्ती
तन में रखो तुम इसका ज्ञात
एम० एस० हुसैन “कैमूरी”
शिक्षक सह युवा कवि
उ. म. विद्यालय छोटका कटरा
मोहनियाँ कैमूर बिहार
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