मन का हारा जाए कहां!
मन का हारा जाए कहां
आज हर कोई है आत्ममग्न
अपने दिल की सुनाए कहां !!
माना की भीड़ भरी इस दुनिया में लोगों को है काम बहुत ,
इल्ज़ाम बहुत है, है सबको थकान बहुत ,,
पर क्यों भूल गए हैं इंसान इस आवारगी में….
जिंदगी है चार दिन की
क्यों न जिएं इसे हम – नशीनी में
जाने कि ..इंसा ही इंसा का सहारा है इस मृत्यु लोक में
फिर भी हम हैं भागे फिरते अपने-अपने लोगों से ।
…तो बताओ ऐसे में मन का हारा जाए कहां,,
आज हर कोई है आत्मगन
अपने दिल की सुनाए कहां!!
अमृता कुमारी
उच्च माध्यमिक विद्यालय बसंतपुर, सुपौल
विद्यालय अध्यापक
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