मौन पड़ी मन वीणा को
भावों ने झंकृत कर डाला
जग उठे मौन से संगीत।
कोरे कागज पर लेखनी दौड़ी
आड़े-तिरछे अक्षर उभरे
निकल पड़े भावों से गीत।
हृदय जाग भावों को छूआ
मिल गए परस्पर दोनों
छाया गुंजन से फिर प्रीत
फिर, खोती गई हर चीज
गूंज-अनुगूंज में खो गई
बज(बच)रहा सिर्फ मौन संगीत।
डॉ०अजय कुमार “मीत”
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