नन्हीं कोयल
काली कोयल चहक रही थी,
डाल डाल पर फुदक रही थी,
कभी शाख पर कभी पात पर,
कुहू कुहू तान सुना रही थी।
आखेटक की पड़ी टनकार सुनाई,
सारी चिड़ियाँ तुरंत घबराई,
जब तक वह कुछ समझ पाती,
गिरी मेरे आंगन, मूर्छित हो गई।
देख उसे “मैं” तुरंत चिल्लाई,
हालत उसकी देख घबराई,
बह रहे थे खून चोंच से
शायद गहरी चोट थी खाई।
तुरंत उसे “मैं” जैसे उठाई,
चोंच खोल कर वह चिल्लाई,
कराह उसकी व्यक्त कर रही थी,
मानव ने ही है, उसकी यह हाल बनाई।
झट मैं उसको हाथ लगाई,
मरहम पट्टी दवा कराई,
सर पर उसके हाथ सहला कर,
कटोरी भर कर पानी पिलाई।
अगले पल ही वह फिर चिल्लाई,
पीड़ा इतनी गहरी थी की,
कुछ पल ही वह सह पाई,
आखिर तज दी प्राण वही पर।
देख उसे हृदय कल्पाई,
कब तजेगा मनुष्य अपनी निष्ठुराई,
सभी जीव है एक समान,
यही है जीवन की सच्चाई।
आँचल शरण
प्रखंड – बायसी
जिला – पूर्णिया
बिहार