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नर ही नारायण-अर्चना गुप्ता

नर ही नारायण

छोड़ पुष्पों की सेज सुहानी
जो काँटों का बिस्तर अपनाए
कर्मपथ पर सतत चलकर जो
सबका पथ प्रदर्शक बन जाए
परहित समर्पित वह नर ही
जीवन में नारायण बन पाए।

संघर्षों की अग्नि में तपकर
जो निशदिन कुंदन बन जाए
तप, त्याग, प्रेम, दान व सेवा
परोपकार का हर पाठ पढ़ाए
परहित समर्पित वह नर ही
जीवन में नारायण बन पाए।

करे स्वीकार चुनौती जो हँसकर
हर लक्ष्य भेदकर दिखलाए
सजल भाव ले उर में अपने
आशा की नवज्योत बन जाए
परहित समर्पित वह नर ही
जीवन में नारायण बन पाए।

रग रग में नव स्वर सृजन भर
परिवर्तन की नयी राह दिखाए
आत्मचेतना को जागृत करके
जो सिद्धार्थ से बुद्ध बन जाए
सर्वस्व समर्पित वह नर ही
जीवन में नारायण बन पाए।

अर्चना गुप्ता
अररिया बिहार

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