पटरी पर लौटती जिंदगी
छाई है जो ऐसी महामारी
हाहाकार मची बड़ी भारी
सांसत में है सबकी जान
हो गई है ऐसी लाचारी
भूख से सब बेबस हो निकले
गुजर-बसर की दिखी राह नई
धीरे-धीरे ही सही
पटरी पर जिंदगी लौट रही।
प्रकृति का जो छाया है कहर
सूना पड़ गया हर गाँव शहर
वीरान से हुए हर गलियारे में
घुला पड़ा है हवाओं में जहर
जीवन शिथिल रूका पड़ा था
सामान्य सी अब दीख रही
धीरे-धीरे ही सही
पटरी पर जिंदगी लौट रही।
खुल गयी सभी जरूरी दुकानें
धीमे ही सही लगे सब मुस्कुराने
सड़कों पर कुछ चहल पहल है
आस के दीप लगे झिलमिलाने
उम्मीदों का जो बाँध था डूबा
संग हौसलों के बनी जा रही
धीरे-धीरे ही सही
पटरी पर जिंदगी लौट रही।
अर्चना गुप्ता
मध्य विद्यालय कुआड़ी
अररिया
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