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प्रकाश पर्व-मधु कुमारी

Madhu

प्रकाश पर्व

चलो एक ऐसा दीप जलाएं
मन के घने दुर्गुण तमस को
सत्य के प्रकाश से जगमगाए
आओ एक ऐसा दीप जलाएं….

करें ईर्ष्या, द्वेष, स्वार्थ की सफ़ाई
मन के आंगन में प्रीत के रंगों से
सतरंगी मनभावन रंगोली बनाएं
आओ एक ऐसा दीपोत्सव मनाएं….

भेदभाव की दीवार गिराकर
सेवा संकल्प का दीप जलाएं
और गिराएं नफ़रत की दीवार
सर्वहित संकल्प का थाल सजाएं
आओ मिलकर दीप जलाएं…….

ऐसा उजियारा दीपों से चहुँ ओर फैलाएं
धरा से अंधियारा दूर बहुत दूर भगाएं
जैसे पीकर तमस रवि धरा का
जग को नित ज्योतित कर जाएं
ऐसा अद्भुत प्रकाशोत्सव मनाएं……

देख धरा की अलौकिक छटा
होता प्रतीत ऐसा दीपों से मानो
अंबर ने तारों से है ये धरा सजाया
नवल ज्योति के नवल प्रकाश से
खुशियों के हम दीप जलाएं
आओ ऐसा प्रकाश पर्व मनाएं…..
दीप जलाएं, दीप जलाएं…….

मधु कुमारी
कटिहार

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