Site icon पद्यपंकज

प्राकृतिक आपदा -जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’

Jainendra

रूप घनाक्षरी छंद में

कभी-कहीं बाढ़ आए,
कभी तो सुखाड़ आए,
सड़कें मकान सारे, हो जाते हैं जमींदोज़।

पहाड़ चटक रहे,
बादल भी फट रहे,
हर साल कोई नई, आफत आती है रोज़।

लोग निज स्वार्थ वश-
पहाड़ों को काट रहे,
नए-नए अविष्कार, खनिजों की करें ख़ोज।

यूंँ ही हम प्रकृति से-
करेंगे जो छेड़छाड़,
प्राकृतिक आपदा का, मिलेगा हमेशा सोज़(वेदना,मनस्ताप)।

जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’
म.वि बख्तियारपुर, पटना

0 Likes
Spread the love
Exit mobile version