वाणी- दोहे
वाणी सबसे बोलिये, हर-पल सुंदर सत्य।
मन को जो शीतल करे, सन्मुख रखकर तथ्य।।
मधुर सरस वाणी सहज, रख-कर सुंदर सोच।
व्यक्त करें शुभ भाव नित, भरे न जो उत्कोच।।
वाणी से चित भाव का, होता सदा प्रवाह।
शब्द अग्नि सम दे नहीं, जो देता हो दाह।।
करता वाणी जब श्रवण, अंतस गढ़े विचार।
मिलते जैसे शब्द हैं, वैसी हो व्यवहार।।
वाणी मुखरित प्रिय श्रवण, मृदुलित उच्च विचार।
शब्द सदा प्रेषित करें, कैसा है व्यवहार।।
वाणी बोले जो मधुर, करते हैं सब प्यार।
तीखी बोली तो सहज, कर देती तकरार।।
वाणी तीखी शत्रु सम, करें सदा नुकसान।
फिर भी कुछ है बोलते, कटुता भरी जुबान।।
संतों की वाणी सदा, जीवन को दे राह।
जिसपर चलने से सभी, पूरण होती चाह।।
वाणी वह अनमोल है, छलके जिसमें प्रीत।
होता आनंदित श्रवण, जैसे मधुरस गीत।।
आओ बोलें हम सरस, जैसे सब परिवार।
परिजन हर्षित भी रहे, बने पराया यार।।
हृदय तराजू तौलकर, लिए होंठ मुस्कान।
वाणी नि:सृत जो किया, वह पाया सम्मान।।
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978

