Site icon पद्यपंकज

होकर मगन -रामपाल प्रसाद सिंह

होकर मगन गगन के नीचे, दौड़ रहे ये बच्चे हैं।
जिन्हें देखकर वयोवृद्ध सब,अंतर मन से नच्चे हैं।।

हरियाली के बीच निरंतर,कोयल की मीठी बोली,
विहग सरीखे उड़ते जो हैं,डाल लिपटते पत्ते हैं।
जिन्हें देखकर वयोवृद्ध सब,अंतर मन से नच्चे हैं।।

पुहुप खिले मौसम में लेकिन,सदा खिले ये हैं बच्चे,
मंदिर-मस्जिद गए नहीं ये,देव तुल्य ये सच्चे हैं।
जिन्हें देखकर वयोवृद्ध सब,अंतर मन से नच्चे हैं।।

बचपन की मनमोहक झाॅंकी,ईश्वर को ललचाते हैं,
आकर धरती पर तुतलाते,स्वर्ग से कहीं अच्छे हैं।
जिन्हें देखकर वयोवृद्ध सब,अंतर मन से नच्चे हैं।।

जहाॅं-तहाॅं वे झुंड-झुंड में,खेलकूद करते दिनभर,
रात हुई तो विवश लौटते, टूट गए सब लच्छे हैं।
जिन्हें देखकर वयोवृद्ध सब,अंतर मन से नच्चे हैं।।


रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान’
पूर्व प्रधानाध्यापक मध्य विद्यालय दरवेभदौर

0 Likes
Spread the love
Exit mobile version