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पंछी -रामपाल प्रसाद सिंह

दो पंछी क्यों विवश हुए हैं,बाहर जाने को।
अपने हुए पराए मतलब,है समझाने को।।

जीवन का हर पल सुखमय जब,तूने पाए थे।
रहते संग परिवार में सबको,सुख पहुॅंचाए थे।।
अब आप तो हुए बेगाने,दिखा जमाने को।
अपने हुए पराए मतलब,है समझाने को।।

सुख-सुविधा से वंचित होकर,जाते सिसक रहे।
अपने ही हैं पाॅंव तुम्हारे,खुदसे विदक रहे।।
अब भी लगता हाथ बढ़ाकर,आए लौटाने को।
अपने हुए पराए मतलब,है समझाने को।।

आज खड़े ‘अनजान’पथिक बन,उसी किनारों पर।
दुखद एक दिन जीना होगा,किसी सहारों पर।।
पानी जैसे ढलते जाना,सागर पाने को।
अपने हुए पराए मतलब,है समझाने को।।

मात-पिता को ईश्वर कहना,झूठा दावा है।
चार-धाम परिभ्रमण करना,मात्र दिखावा है।।
अब लगता दुनियादारी है,पथ भटकाने को।
अपने हुए पराए मतलब,है समझाने को।।

प्रतिफल परिलक्षित हैं होगें,तेरे साथ यही।
फिर मढ़ देना अरु की गलती,कहीं न बात सही।।
तुमने भी सामर्थ्य छिपा है,गंगा लाने को।
अपने हुए पराए मतलब,है समझाने को।।


रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान’
पूर्व प्रधानाध्यापक मध्य विद्यालय दरवेभदौर

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