रोटी
इस दो जून की रोटी की खातिर नीयत करते सब खोटी,
वाकई रोटी चीज नहीं छोटी।।
क्या कहूँ इस पापी पेट के लिए क्या क्या सितम उठाना पड़ता है,
दो जून की रोटी की खातिर मीलों दूर तलक जाना पड़ता है।।
अमीर हो गरीब सभी को रोटी की जरूरत है,
पर गरीबों से पूछो इस रोटी की क्या कीमत है।।
इसी रोटी के लिए तरस रहा मजदूर,
कमाने कुछ पैसे निकला हो के मजबूर।।
पैदल ही निकले हाथ में रोटी लेकर चल,
बिखरे लाश के ढ़ेर देख आत्मा गई पिघल।।
नियति का ऐसा खेल देखो क्या नतीजा,
कुचलते मजदूरों से आहत दिल आ पसीजा।।
भूखे पेट की जिजीविषा ऐसी,
परिस्थिति महामारी की भयावहता कैसी।।
हजारों किलोमीटर घर से दूर,
दर दर भटक रहे मजदूर।।
कातर नजरों से निहारते अन्न को,
जब दान में खाने को मिले इन सज्जन को।।
हे ईश्वर बस इतनी है प्रार्थना,
सबको रोटी मिले करते हैं ये साधना।।
प्रियंका प्रिया
स्नातकोत्तर शिक्षिका (अर्थशास्त्र)
श्री महंत हरिहरदास उच्च विद्यालय, पूनाडीह
पटना बिहार