सुन गोरैया
सुन “गोरैया”! तेरे जैसी
मैं भी एक चिड़ियाँ होती
जब जी करता उड़ते-उड़ते
सैर जहान का कर आती ।
न रहता कोई टोका-टोकी
न करता कोई रोका-रोकी
फिक्र नहीं करती दुनियाँ का
मैं अपने धुन में ही गाती ।
भाता नहीं मुझे चारदीवारी
होती “नीड़” डाल पर मेरी
झूम-झूम कर संग तेरे “मैं”
आसमान को छूकर आती ।
छूट गए जो “संगी-साथी”
खोज-खबर मैं उनका लेती
बिछड़े हैं जो “मेरे” अपने
हर-दिन उनसे मिलने जाती।
तेरे जैसी ही “आजादी”
काश! मुझे भी मिल जाती
तोड़ के सारे “बंदिशो” को
साथ मैं तेरे उड़ पाती ।
पर, क्या पूरे होंगे “सपने”
देती मुझे “पंख” तुम अपने
लेकर पंख तुम्हारा एक दिन
सपनों में उड़ान भर लेती
काश ! गौरैया तेरे जैसी
मैं भी एक चिड़िया बन जाती ।
स्वरचित
डॉ अनुपमा श्रीवास्तव 🙏🙏
आर.के.एम +2 विद्यालय
जमालाबाद मुजफ्फरपुर
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