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युग का प्रभाव..जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’


मनहरण घनाक्षरी छंद में
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मूर्ति को तो माता कह-
आरती      उतारते  हैं,
अपनी माता को कटु, बोलते वचन हैं।

घर पर   कमरे  में-
पेड़ पौधे लगाते हैं,
कारखाने हेतु रोज, कटते चमन हैं।

दरवाजे-खिड़कियों-
में पर्दे  तो लगाते हैं,
तन पर रोज कम, हो रहे वसन हैं।

पत्नी की संबंधियों से-
बढ़    रही   नजदीकी,
भाई की  पराई हुई, अपनी बहन है।

भाग-२
भाई-पुत्र-भतीजे की-
हो रही  है  राजनीति,
जाति-धर्म-भाषा से परेशान वतन है।

शासन चलाने वाले-
मालामाल बन गए,
जनता के तन पर, लिपटा कफन है।

बच्चों के संस्कार पर-
देते लोग  ध्यान  नहीं,
संपत्ति बनाने में ही, दुनिया मगन है।

बेटा-बेटी-औरत से –
बन    रहा  परिवार,
माता-पिता बिना लगे, उदास भवन है।

जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’

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