मनहरण घनाक्षरी छंद में
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मूर्ति को तो माता कह-
आरती उतारते हैं,
अपनी माता को कटु, बोलते वचन हैं।
घर पर कमरे में-
पेड़ पौधे लगाते हैं,
कारखाने हेतु रोज, कटते चमन हैं।
दरवाजे-खिड़कियों-
में पर्दे तो लगाते हैं,
तन पर रोज कम, हो रहे वसन हैं।
पत्नी की संबंधियों से-
बढ़ रही नजदीकी,
भाई की पराई हुई, अपनी बहन है।
भाग-२
भाई-पुत्र-भतीजे की-
हो रही है राजनीति,
जाति-धर्म-भाषा से परेशान वतन है।
शासन चलाने वाले-
मालामाल बन गए,
जनता के तन पर, लिपटा कफन है।
बच्चों के संस्कार पर-
देते लोग ध्यान नहीं,
संपत्ति बनाने में ही, दुनिया मगन है।
बेटा-बेटी-औरत से –
बन रहा परिवार,
माता-पिता बिना लगे, उदास भवन है।
जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’
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