माँ के भला कोख़ में क्यों मरती बेटियाँ,
जन्म लेती नमक क्यों हैं चखती बेटियाँ।
समाज के दरिंदों तुम आवाज़ मेरी सुन,
खुद मरती रहीं तुमको हैं क्यों जनती बेटियाँ।
दहेज की बेदी पर फिर क्यों मरतीं बेटियाँ?
कई रोक – टोक तंज तो हैं सहती बेटियाँ,
दुख बिना ही उफ्फ किये हैं सहती बेटियाँ।
सेवा भी अतिरेक तो हैं करतीं बेटियाँ,
दहेज की बेदी पर फिर क्यों जलती बेटियाँ।
दहेज की बेदी पर फिर क्यों मरतीं बेटियाँ?
तुम क्या करोगे जो न कहीं होंगी
बेटियाँ,
मरहम न मिलेगा कहीं जो न होंगी बेटियाँ।
प्यार औऱ दुलार को तरश जाओगे तुम,
जो रौनके बहार नहीं होंगी बेटियाँ।
दहेज की बेदी पर फिर क्यों मरतीं बेटियाँ?
कुदरत की तो सौगात मुकम्मल हैं बेटियाँ,
लक्ष्मी की तो अवतार हैं ये घर की बेटियाँ।
दहेज भी वहीं है और दुल्हन भी हैं वहीं,
शहर की नजरें खास हैं ये प्यारी बेटियाँ।
दहेज की बेदी पर फिर क्यों मरतीं बेटियाँ?
पढ़ती हैं हुनरमंद हैं ये प्यारी बेटियाँ,
समाज और देश को हैं गढ़तीं बेटियाँ।
कहो भला हैं कम कहाँ से और किस कदर,
जल में, थल में, नभ में हैं गरजतीं बेटियाँ।
दहेज की बेदी पर फिर क्यों मरतीं बेटियाँ?
देश का ओलंपिक में मान रखतीं बेटियाँ,
शरहद पर दिलों जान से हैं मरतीं बेटियाँ।
माँ भारती की लाज भी तो रखतीं बेटियाँ,
संघर्ष को विजय में हैं बदलतीं बेटियाँ।
दहेज की बेदी पर फिर क्यों मरतीं बेटियाँ?
उठो कि क्रांति की मशाल हाथ में लिए,
नारी शक्ति का सम्मान साथ में लिए।
घर – घर की तो हैं आन – बान – शान बेटियाँ,
दहेज अब मिटेगा हैं गुमान बेटियाँ।
डॉ. स्नेहलता द्विवेदी ‘आर्या’
उत्क्रमित कन्या मध्य विद्यालय शरीफगंज कटिहार

