जब कोई फल भाता, दूर से नज़र आता,
छिप कर बागानों से, टिकोले को तोड़ता।
गाँव की हीं महिलाएँ, कुएँ पर पानी भरें,
पीछे से कंकड़ मार, मटके को फोड़ता।
जब बड़े भाई, पिता, खेतों की बुवाई करें,
जड़ सटा फसलों को, कुदाल से कोड़ता।
पौधे देख हरे-भरे, जब कभी मन करे,
टहनी को तोड़कर, फिर उसे जोड़ता।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
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