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माँ का आंचल – रत्ना प्रिया

चाहता हूँ मैं रोज मुझे माँ ,लोरी गा के सुनाए |
माँ की लोरी , माँ का आंचल , माँ की बातें भाए ||

अबोध शिशु की रक्षा को , ईश्वर ने माँ को बनाया ,
इस धरती पर जीवन देने, माँ के रूप में आया ,
सृष्टि के कण-कण, उपवन मे, माँ के रूप समाये |
माँ की लोरी , माँ का आंचल , माँ की बातें भाए ||

उंगली पकड़ के चला मैं जिसके, समझा सारे इशारे ,
माँ ने मेरी खुशियों के हित, अपने सुख-दुख वारे,
माँ के हृदय के सागर में, प्रेम सदा लहराए |
माँ की लोरी , माँ का आंचल , माँ की बातें भाए ||

माँ होती गंगा-सी निर्मल, पावन पुण्य धरा-सी ,
बच्चों के हित रहे समर्पित, खुद रह जाती प्यासी,
मां का स्नेहाशीष पाने , ब्रह्म-विष्णु ललचाएँ |
माँ की लोरी , माँ का आंचल , माँ की बातें भाए ||

माँ है सच्ची गुरु हमारी, अच्छे मार्ग सुझाती,
सुंदर शिक्षा-दीक्षा देकर, निर्भय सबल बनाती,
मां की महिमा कैसे लिखुँ, शब्द समझ में ना आए |
माँ की लोरी , माँ का आंचल , माँ की बातें भाए ||
रत्ना प्रिया ,
मध्य विद्यालय-
हरदेवचक, पीरपैंती, भागलपुर

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