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मेरे पिता – मीरा सिंह “मीरा”

Meera Singh

साहस शौर्य और
पराक्रम के प्रतीक
जीवन से भरपूर
बलिष्ठ कंधे पर बैठकर
मैं दुनिया के
सर्वोच्च शिखर पर
आसीन होने का
गौरव हासिल करती थी
आपको देखकर
थके-माँदें कदमों को
हौसला मिल जाता था
चेहरे पर नवकिरणों की
आभा बिखर जाती थी
आलस्य की जकड़न
ढीली पड़ जाती थी
थकावट कहीं ढूंढें
नहीं मिलती थी
मैं आपका अंश थी
पर आपके जैसी नहीं थी
हां,जानती थी मैं
अकर्मण्यता आपको
रास नहीं आती
आपके खातिर
यूं ही मैं अक्सर
आप जैसा होने का
कुछ स्वांग करती
हंसी का मुखौटा
चेहरे पर लगा लेती
और ठहाके मारकर हंसती
सहसा अपने अंदर
कुछ हलचल सी
महसूस होती थी
मेरी शिथिल रगों में
दौड़ने लगता था जोश
मन विस्मित हो जाता था
यक़ीनन खून आपकी थी
पर आप जैसी नहीं थी मैं
आप कभी रुकना
पसंद नहीं किए
और मैं दो कदम
चलना गवारा नहीं की
आप कभी किसी से
हारना नहीं जानते थे
और मैं लड़ना नहीं जानी
आज भी मुझे स्मरण है
आपके शब्दकोश में
“नामुमकिन” शब्द नहीं था
और मुझमें आपके जैसा
साहस, धैर्य,पराक्रम
कभी नहीं था
वक्त की रफ्तार में
जाने कब और कैसे
वो तमाम निहितार्थ आदतें
जो आपकी विरासत थी
मुझमें रेंगती हुई
महसूस होती हैं

मीरा सिंह “मीरा”
+२ राजापुर उच्च विद्यालय अर्जुनपुर, सिमरी, बक्सर

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