शिक्षक हूँ, बस मान चाहिए।
थोड़ा- सा सम्मान चाहिए।।
कोरा कागज हो, या हो पानी
उसमें रंग मैं भरता हूँ।
कलाकार हैं बड़े प्रवीण हम,
छात्रों को यह बतलाता हूँ।।
फटे हुए रद्दी टुकड़े को,
जोड़- जोड़ कर सिलता हूँ।
आकार नया मैं देता हूँ
सोच बड़ा मैं रखता हूँ।।
निश्छल, निष्कपट मन में,
प्यार से अनुशासन भरता हूँ।
मिले देश को अच्छा नागरिक
यही कार्य मैं करता हूँ।।
जन-जन में मानवता का संचार।
सिखाता हूँ सबको संस्कार।।
सपने देखो साकार करो,
यही चेतना जगाता हूँ।।
पता नहीं, क्या हो गया है
शासन और प्रशासन को?
मन लगाकर करता हूँ काम।
शक की दृष्टि से देखा जाता हूँ।।
नहीं चाहिए कोई पुरस्कार
आत्म संतुष्टि तब होता है।
जब छात्र, छात्रा अपने रण में,
सफलता प्राप्त कर लेता है।।
शिक्षक हूँ बस मान चाहिए।
थोड़ा-सा सम्मान चाहिए।।
भवानंद सिंह
म. वि. मधुलता
रानीगंज, अररिया
बिहार
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