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तिल सकरात-जैनेन्द्र प्रसाद रवि’

Jainendra

तिल सकरात

बचपन से हम सुनs हलूं महिमा तिल सकरात के,
घर के जमाबल रहे शुद्ध दूध-दहिया,
चप-चप हाथ करे लपटल मख्खन, महीया ।
दुश्मन के भी दोस्त बना दे स्वाद सुंदर सौगात के।

आगू में जब थाल आबे दम-दम दमके,
छालीदार दही, चुडा चांदी जइसन चमके।
हम तोरा से बात करs ही बासमती चावल, चूड़ा, भात के।

चुड़ा संग मिला के थाल में दही-दूध, भूरवा,
ऊपर से सजा के रखल तिलकुट औ तिलवा।
आलूदम खूब दमके ला बनवल घरनी के हाथ के।

यही महिमा है भाई अपन तिल सकरात के।

जैनेन्द्र प्रसाद रवि’

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