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क्यों भूल गया-कुमकुम कुमारी

क्यों भूल गया

क्यों भूल गया ऐ इंसान
ये किराए का है मकान
साँसे बेच-बेच कर किराया चुकाना है
फिर वापस घर चले जाना है
तो क्यों इस नश्वर जगत से नेह लगाना है।

ना तन तेरा ना साँसे तेरी
ना जीवन तेरा ना मृत्यु तेरी
फिर किस बात का घमंड कर बैठा तू
क्यों किराये के तन को
अपना घर समझ बैठा तू ।

क्या करने आया था
और क्या कर बैठा तू
जिस इश्वर ने रचा तुझको
उसे ही खिलौना समझ बैठा तू
ये कैसी नासमझी कर बैठा तू ।

यह जीवन रैन बसेरा है
कर्मों का पग फेरा है
पल दो पल का ठिकाना है
फिर वापस घर चले जाना है
फिर क्यों इसे धरोहर समझ बैठा तू ।

जब साँसे कम रह जाएगी
औऱ मौत दरस दिखलाएगी
तब बात समझ में आएगी
कि यह क्या कर बैठा तू
खुद को खुदा समझ बैठा तू ।

इस जहाँ से जब तू जाएगा
परमात्मा को क्या मुह दिखाएगा
ऋण चुकाने आया था
औऱ कर्जा लेकर जाएगा
क्या तुझे शर्म नहीं आएगा

इसलिए ऐ इंसान अब जाग जरा
ईश्वर को पहचान जरा
जीवन मूल्य को जान जरा
मैं ही मैं का रट छोड़ जरा
तू ही तू ही बोल जरा ।

तू ही तू बोल जरा
अंतर्मन को खोल जरा
अंतर्मन को खोल जरा ।

कुमकुम कुमारी
मध्य विद्यालय बाँक
जमालपुर
मुंगेर

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