जंगल में मंगल
संग हरियाली के जी ले पल दो पल
करती सरिता जहाँ पगपग कलकल
मनहर सी छटा छाई धरा पर हरपल
करते अंबर जिसकी रखवाली पलपल
आओ बच्चों करे “जंगल में मंगल”।
झरने जहाँ करते हैं कलरव
हँसकर फूल मिलते हैं पगपग
करता नृत्य मयूरा जहाँ सुंदरम
शांत झील का दृश्य लगता आकर्षम
कोयल संग पपीहा गाती गीत मधुरम
झूम उठे सारे उपवन और बोलें मंद मंद
आओ करें सब मिल “जंगल में मंगल”।
देखो घिर आई बादल नभ में श्यामल
पायल सी बजती है बूंदे जहाँ छम छम
नभ में चमक रहे हैं तारे देखो चम चम
आओ बच्चों खेलें यहाँ सब घुल मिल
धरती पर छाई चारों ओर चहल पहल
सज गई हरियाली से धरा का आँचल
तो क्यों न मनाएं हम “जंगल में मंगल”।
मधु कुमारी
उ० म० वि०भतौरिया
हसनगंज, कटिहार
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