पगडंडी पर भागे ऐसे,
बालक सुलभ सलोने हैं।
नन्हीं-नन्हे साथ-साथ हैं,
अनुभव नए पिरोने हैं।
पगडंडी भी स्वागत करने,
हरियाली के बीच खड़ी
खड़ी फसल ललकार रही है,
शक्ति और संजोने हैं
नन्हीं-नन्हे साथ-साथ हैं,
अनुभव नए पिरोने हैं।
लक्ष्य नहीं लेकर चलते हैं,
सुबह लिए शुभ शाम ढली।
कल क्या होगा पता नहीं है,
पता नहीं क्या पाने हैं।
नन्हीं-नन्हे साथ-साथ हैं,
अनुभव नए पिरोने हैं।
करती माॅं है साफ-सफाई,
मटमैला वापस जाते।
बहुरंगी तितली उलझाती,
जिंदा जान खिलौने हैं।
नन्हीं-नन्हे साथ-साथ हैं,
अनुभव नए पिरोने हैं।
जब कागज से नाव बनाते,
आपस में सब हिल-मिलकर।
झगड़े होते पल में मिटते,
पल के रोने-धोने है।
नन्हीं-नन्हे साथ-साथ हैं,
अनुभव नए पिरोने हैं।
रामपाल प्रसाद सिंह अनजान
पूर्व प्रधानाध्यापक मध्य विद्यालय दर्वेभदौर
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