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पेड़- गिरीन्द्र मोहन झा

Girindra Mohan Jha

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पेड़
बीज को अंकुरित होने में भी लगता है संघर्ष,
पौधे धीरे-धीरे बढ़कर हो जाते हैं पेड़,
यह पतझड़-वसंत-ग्रीष्म-वृष्टि-शीत,
सबको सहता है, सबका आनंद लेता है,
उचित समय के अनुसार, फलता-फूलता है,
धूप-छाँव सब इसके अपने हो जाते हैं,
श्वसन द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड,
प्रकाश-संश्लेषण द्वारा आक्सीजन देता है वायुमंडल को,
लकड़ी, ईंधन सबकुछ देता है मानव-समाज को, भूमंडल को,
इसकी मजबूती का पता इसकी ऊंचाई से नहीं, इसके जड़ों की गहराई से लगता है,
पेड़ कितनी भी ऊंचाई को छू ले, पर धरती यानि धरातल से हमेशा जुड़ा होता है।
गिरीन्द्र मोहन झा

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