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कोरोना एक संकट-प्रीति कुमारी

कोरोना एक संकट 

कोरोना के इस हाहाकार में
सारा जन-जीवन अस्त-व्यस्त
लोग भयाकुल और त्रस्त ।
घर की चहारदीवारी में
हम सिमट गए हम उलझ गये
जब घर पर थोड़ा वक्त मिला
हमने सोंचा हमने पाया
शायद यह धरती आज हमें
यह समझाने को आतुर है
क्यों लालच रूपी खंजर से,
इस धरा को आहत कर डाला
जंगल सारे छिन्न-भिन्न किये
नदियों को दूषित कर डाला
मानव मानवता भूल गए
आत्मा का खण्डन कर डाला
इस आधुनिकता की होड़ में
सारे नाते रिश्ते भूल गए ,
पैसों की ललक में हम अपनी
नैतिकता को भी लील गए ।
पर वाह री धरती तेरा न्याय !
जब चारों ओर है अन्धकार
और सघन विराना है ,
कोरोना के कारण ही सही
हमने सबको पहचाना है ।
इस लॉकडाऊन के कारण ही
सबलोग घरों को लौट गये,
भाई-भाई में प्रेम हुआ
माँ की ममता भी जाग गईं ।
ऐसा मानो आभास हुआ
जीवन के इन गत वर्षों में,
हमने जो कुछ भी खोया था
इस लॉकडाऊन के कारण ही
अमूल्य धरोहर पाया है ।
नदियाँ फिर कल- कल करने लगीं,
झरनों ने गीत सुनाया है ।
जंगल भी फिर से हरा-भरा बन
हम सबको हर्षाया है ।
पर मन में है विश्वास हमें कि
कोरोना एक काली रात सी बीत जाएगी
और फिर एक सुन्दर और
ऊर्जावान सूरज उदित होगा
जो एक नया सवेरा लाएगा
और हम सबका जीवन
फिर से लहलहाएगा ।

प्रीति कुमारी
कन्या मध्य विद्यालय मऊ

विद्यापति नगर  समस्तीपुर

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