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वक्त पूछता है, गिरीन्द्र मोहन झा

Girindra Mohan Jha

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वक्त पूछता है
रात्रि में शयन से पूर्व वक्त पूछता है,
आज तुमने क्या-क्या अर्थपूर्ण किया,
सुबह होती है जब, वक्त पूछता है,
प्रिय ! आज तुम्हें करना है क्या-क्या,
रविवार जब आता है, वक्त पूछता है,
इस सप्ताह अर्थपूर्ण क्या किया,
अगले सप्ताह का लक्ष्य है क्या,
इकत्तीस दिसंबर का वक्त पूछता है,
इस वर्ष तुमने धर्मपूर्ण, अर्थपूर्ण क्या किया,
एक जनवरी आ जाए, वक्त पूछता है,
वर्तमान वर्ष की योजना है क्या-क्या,
वय चतुर्थ आ जाए, वक्त पूछता है,
तीनोंपन क्या-क्या अर्थपूर्ण है किया,
वक्त पूछता है, परलोक के लिए भी,
उसके सुख के लिए कुछ करना है क्या?
धरातल से जुड़कर वर्तमान से भविष्य की ओर,
निरन्तर बढ़ते चलो, कुछ-कुछ अर्थपूर्ण करते चलो,
महत्व इसका नहीं, मेरे दोस्त, यह जीवन कितना जीया,
यही तत्व अमरत्व है, यह अमूल्य जीवन तूने कैसा जीया।

गिरीन्द्र मोहन झा

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