दादा और पोते के संवाद-दिलीप गुप्ता ‘दीप’

Dilip deep

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दादा और पोते के संवाद

दादा यहां तू कैसे आए,
कौन ले आया तुमको।
तुम बिन रहे उदास सदा,
क्या एहसास है तुमको।

मेरा बचपन कट जाता था,
खेल-खेल कर तेरे संग में।
बहुत उदास लगे है मुझको,
अब न रहूँगा मैं उस घर में।

बोले मम्मा डैड थे मुझको,
तुम तो गए हो रिश्ते में।
आओगे कुछ वर्ष बीते फिर,
समझाए थे रस्ते में।

भरी आंख से बोले दादा,
तुम तो मेरा तारा है।
तड़प रहा था तुम बिन मैं,
तू तो राज दुलारा है।

उम्र ढ़ली आया चौथापन,
तब मुंह मुझसे मोड़ गया,
जन्म दिया था जिस बेटे को,
वह वृध्दाश्रम छोड़ गया,

बनना था जब मेरी लाठी,
मुझको बोझ समझ बैठा।
छोटी-छोटी बात पर वह,
मुझ पर अकड़ दिखा बैठा।
पड़ी जरूरत देखभाल की,
मुझे अकेला छोड़ गया।
जन्म दिया था जिस बेटे को,
वह वृद्धाश्रम छोड़ गया।

बचपन में मेरे कंधे पर,
घूम घूम कर देखा मेला,
उम्र ढ़ली मेरी जब देखो,
छोड़ दिया है मुझे अकेला,
अपने क्षणिक से सुख की खातिर,
दुख से नाता जोड़ गया।
जन्म दिया था जिस बेटे को,
वह वृद्धाश्रम छोड़ गया।

दर्द छुपाकर आंसू पीकर,
भावहीन से रहते हैं,
टीस बहुत बढ़ जाती है तो,
आंख से आंसू बहते हैं,
चाहत थी कोई साथ निभाए,
तब मुझसे नाता तोड़ गया।
जन्म दिया था जिस बेटे को,
वह वृद्धाश्रम छोड़ गया।

खत्म हुआ एहसास भी अब,
मानवता भी हार गई,
क़त्ल हो गया रिश्तों का,
भावना भी बेजार हो गई,
मुझको है जब बहुत जरूरत,
वह मुझसे मुंह मोड़ गया।
जन्म दिया था जिस बेटे को,
वह वृद्धाश्रम छोड़ गया।

अब तो मुझे कुछ नहीं, बस साथ चाहिए।
बने सहारा अपनेपन का, एहसास चाहिए।

✍ दिलीप गुप्ता ‘दीप’
UMS खीरी भगवानपुर
कैमूर

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