ये हवाएं और फिजाएं-सुरेश कुमार गौरव

Suresh kumar

Suresh kumar

ये हवाएं और फिजाएं

प्रकृति ने बनाए सुलभ नियम, बहुत सारे ऐसे !
संसार के सभी जीव बंधे हुए हैं, इनसे जैसे !!
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मानव की विचारधारा मानों बदलती चली गई!
जीवन हवा में जहर, ढ़ेर सारी घुलती चली गई !!
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स्वस्थ जीवन मानों छिनती-मरती चली गई!
जीवन जगत मानो सिमटती-थमती चली गई!!
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वन-जंगल, पेड़-पौधों की दूरियां घटती चली गईं!
वसंती हवा अब न जाने कहां लौटती चली गई !!
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सांसों की डोर कईयों की थमती सी चली गई.!
युद्ध और हथियारों की होड़ बढ़ती ही चली गई!!
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समस्याएं गंभीर कई विकट होती चली गईं !
मानव स्वार्थ से हवा जहरीली होती चली गई!!
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हम मानवों ने किया प्रकृति से खूब खिलवाड़!
संसार का पूरा जीवन तंत्र ही दिया पूरा बिगाड़ !!
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जब जब पर्यावरण पर गहराता गया गंभीर संकट!
तब तब जीवन की समस्याएं खड़ी होती गईं विकट!!
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मानव ने स्वार्थ हित में खुद जहरीला जीवन किया! 
शुद्ध हवा, फि़जा में जहर घोला और खुद ही पीया!!
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जहां-जहां पर है जीवन पर्यावरण है पूरा संरक्षित! 
वहां-वहां पर जीवन जगत है पूरी तरह से सुरक्षित!!
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क्योंकि वहां पर मंद-मंद मुस्काती हवा तराने छेड़ती!
जीवन जीने के नए राग और स्वर लहरी भी जोड़ती!!
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लेकिन कहीं एक दिन ऐसा न हमारा जीवन हो जाए!
ये हवाएं और फिजाएं कहीं पूरी दुनिया से न रुठ जाए!!

✍️सुरेश कुमार गौरव, शिक्षक

पटना बिहार
सर्वाधिकार सुरक्षित

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