श्रद्धा सुमन-जैनेन्द्र प्रसाद रवि

Jainendra

तिनका तिनका जोड़ कर टी ओ वी सा महल बनाया।
अपने शब्द,स्नेह और ज्ञान से शिक्षकों ने इसे सजाया।।
नाम, चेहरा, कर्म से हम एक- दूसरे से थे अनजान।
विवेक, कर्म और पेशे के कारण हुई आपसी पहचान।।
कुछ बहुत कर्मनिष्ठ थे उनमें से कुछ थे बहुत ही ज्ञानी।
कोई सर्वश्रेष्ठ वाकपटु, कलाकार, लेखक स्वाभिमानी।।
अपनी कुशलता, निष्ठा से बांटते थे बच्चों में ज्ञान।
कर्म पथ पर अडिग रह करते थे समस्याओं का निदान।।
अल्प समय में कुछ साथियों ने छोड़ी थी अपनी छाप।
शब्द सरिता से मोती चुन भरते लेखनी से आलाप।।
निज कर्मों से ही जहां में बड़ा बनता प्राणी है।
करता विद्यादान यहां वही सबसे बड़ा दानी है।।
मतलब की दुनिया है किसी के लिए न कोई रोता है।
जो निस्वार्थ सेवा करता है वह मर कर अमर होता है।।
चाहे कितना हो बड़ा खजाना मंद मंद घटता है।
विद्या धन अनमोल रतन है जो देने से बढ़ता है।।
किन्हीं की शोक समाचार सुन कलेजा मुंह को आया।
जिनके चले जाने से उठ गया परिजनों के सिर से साया।।
परिस्थिति, समय और काल पर किसका चला है जोर।
सूर्योदय के साथ ही नहीं होता है अचानक यूं भोर।।
है ईश्वर से प्रार्थना उनके परिजनों को संबल दें।
विपदा की घड़ी में दुख सहने की क्षमता और बल दें।।
अपनी आंखों में आंसू भर मैं नमन उन्हें करता हूं।
बार-बार उनके श्री चरणों में श्रद्धा अर्पण करता हूं।।

जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि. बख्तियारपुर,पटना

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