लेखन मेरे लिये वरदान- कंचन प्रभा

Kanchan

मैं अभिशाप थी इस धरती पर

जैसे कोई शाप थी इस धरती पर,

भीड़ भरी दुनिया में मैं गुमनाम बन गई थी ।

आज लेखन मेरे लिए वरदान बन गई थी ।

जन्म से ही मुझे छला जा रहा था

चारदीवारी की शोभा कहा जा रहा था,

थी मैं लड़की बस बदनाम बन गई थी ।

आज लेखन मेरे लिए वरदान बन गई थी।

धूमिल सी इस भंवर से निकल कर

कठिन पत्थरों से निखर कर,

कलम से ही मेरी पहचान बन गई थी ।

आज लेखन मेरे लिए वरदान बन गई थी ।

दुनिया से लाखों जख्म मिलते रहे

फिर भी होंठों को हरदम सिलते रहे,

दिल के दर्द मेरे लिये मुस्कान बन गई थी ।

आज लेखन मेरे लिए वरदान बन गई थी ।

जमाने के पिंजड़े में फंसती जा रही थी

सोने की समझ कर हंसती जा रही थी,

धीरे-धीरे सबसे अनजान बन गई थी ।

आज लेखन मेरे लिए वरदान बन गई थी ।

ना शोहरत थी ना दौलत थी

गरीबों जैसी ही मेरी हालत थी

शब्दों के हीरों से मैं धनवान बन गई थी

आज लेखन मेरे लिए वरदान बन गई थी ।

किसी को मुझ पे कोई नाज नहीं था

मेरे माथे कभी भी कोई ताज नहीं था

फिर अक्षरों के किले की सुल्तान बन गई थी ।

आज लेखन मेरे लिए वरदान बन गई थी ।

वक्त गुजरता रहा मैं समझती गई

हर मुद्दों पर मैं लिखती गई

जिन्दगी अब बेहद आसान बन गई थी ।

आज लेखन मेरे लिए वरदान बन गई थी।

कंचन प्रभा
रा0मध्य विद्यालय गौसाघाट ,दरभंगा

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