बच्चे और विद्यालय-संयुक्ता कुमारी

Sanyukta

बच्चे और विद्यालय

बच्चे तो बच्चे होते हैं
मन के बड़े सच्चे होते हैं।।

ये वो फूल है जिनके बिना
विद्यालय लगते बहुत वीराने ।।

होते जब विद्यालय में
विद्यालय लगते न्यारे ।।

कभी दौड़ लगाते बागों में
कभी आपस में झगड़ते।

इन का भोलापन लगता
हम शिक्षक को बड़े ही प्यारे ।।

प्रश्नों का अंबार है मन में
मजहब की कोई बात नहीं ।।

शिक्षक ही देते हैं इनके
हर प्रश्नों के उत्तर सारे ।।

बच्चों को किसी से बैर नहीं
शिक्षक इनके लिए कभी गैर नहीं।।

इनका बालपन मिलता है
शिक्षक को बांह पसारे।।

जब तक विद्यालय में बच्चा है
तब तक विद्यालय अच्छा है ।।

बिन बच्चों के सूना लगता
विद्यालय के हर गलियाँ रे ।।

चंचल नटखट होते हैं बच्चे पर
शिष्टाचार, दया, क्षमा के दर्पण।।

सब कर लेते हैं आसानी से
जब शिक्षक इन्हे करके सिखलाते।।

लॉकडाउन में अब दिखता है
बच्चों के बिना विद्यालय सूना रे ।

बच्चे तो बच्चे होते हैं ।
मन के बड़े सच्चे होते हैं ।।

ये वो प्यारे फूल है जिनके बिना
विधालय लगते बहुत विराने ।।

संयुक्ता कुमारी
संकुल समन्वयक
कन्या मध्य विधालय मलहरिया

बायसी पूर्णिया ( बिहार )

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