हमारा जीवन-पंकज कुमार

हमारा जीवन 

जब हम होते छोटे घरों में
लगता था जैसे कैद थे हम,
बाहर की दुनिया देखी तो
घर तो बिल्कुल मंदिर जैसा।

जब हम रहते छोटे गांवो में
लगता था जैसे पिछड़े थे हम,
जब शहर जाकर देखा तो
गांव जन्नत से कम था कहा।

जब पास हमारे टेलीफोन नहीं
लगता कि जैसे कुछ भी नहीं ,
जब खरीदी टेलीफोन मोबाइल
मुसीबत को जैसे घर लाई।

जब करते अन्न की खेती हम
लगता कि जैसे गरीब थे हम,
बाहर जब नौकरी की हमने
खेती करके ही अमीर थे हम।

जब देखे थे हमने मोटर गाड़ी
लगता था जैसे आराम वहां,
जब खरीदी हमने मोटर गाड़ी
साईकिल वाली आराम कहा।

जब हम घर में होते थे
लगता था जैसे कैद थे हम,
बाहर की दुनिया देखी तो
घर तो बिल्कुल मंदिर जैसा।

खुश रहना सिखो जीवन में
किस्मत से जीवन मिलता है,
जो दिया है ऊपर वाले ने
वो कहां  सभी को मिलता है।

पंकज कुमार
प्रा. वि. सुर्यापुर
अररिया

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