दामन-विजय सिंह “नीलकण्ठ”

दामन

प्रभु का दामन पकड़ पकड़ कर 
हम सब भू पर आते हैं 
लेकिन भू पर आते हीं सब 
अपनों में खो जाते हैं।
आने से पहले वादा करते 
कभी न तुम्हें भुलाएँगे 
नित दिन तेरी पूजा को 
धर्मस्थल तक भी जाएँगे।
लेकिन मोह जाल में फँसकर 
कभी याद उन्हें न करते हैं 
यह मेरा तो वह तेरा सह
जीवन यापन करते हैं।
इसीलिए तो कुपित होकर 
सब जन दंडित होते हैं 
घर-घर बीमारी है दिखती 
हर जन पीड़ित दिखते हैं।
इश ने ऐसा है चक्र चलाया 
हाय हाय सब लोग करे 
बुद्धिमानी खत्म हो चुकी 
असमय कुछ लोग मरे। 
अभी भी कुछ नहीं है बिगड़ा 
लालच ईर्ष्या का त्याग करो 
जीवित प्रभु की सेवा करके 
जीवन में खुशियाँ भर लो 
फिर प्रभु जी खुश हो जाएँगे 
विपत्तियाँ फिर न आएँगे।
विजय सिंह “नीलकण्ठ”
सदस्य टीओबी टीम

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