एक कवि की सोच-अशोक प्रियदर्शी

एक कवि की सोच

एक कवि की सोच 
अद्भुत, विश्वसनीय,
अकल्पनीय है।
कवि तो मस्तमौला है,
इसे मानो या न मानो,
अद्भूत अलबेला है।

सभी कहते हैं,
जहाँ न पहुँचे रवि,
वहाँ पहुँचे कवि,
इसे मानते हैं सभी।
कवि की वाणीस
शब्दों के समंदर में,
अपनी हृदय से‌।

असीम भावनाओं को,
एक आकार देकर,
मन मूर्ति का रूप लेकर,
प्रस्तुत करते हैं।
अपनी लेखनी से,
मिशाल बन जाता,
पता तो चलता है,
पढ़ने व देखने से।

कवि के लिए
हवा में महल
बनाना हो, या
जाना हो समंदर पार।
या फिर जाना हो,
चाँद के पार।
कवि के लिए,
सभी जगह आसान है,
बनाना घर-द्वार।

मोहब्बत के लिए,
शब्दों से ही मन मोहक,
बेहतर शमां बांधते हैं।

चाहा जिसे दिल से
आगोश में लेकर,
उसे साधते हैं।

कवि की हर बात,
किसी मंजिल से,
तो कम नहीं है।
गर खास सपना,
पूरा नहीं हुआ,
शायद इसका भी ,
कोई गम नहीं है।
क्योंकि कवि की सोच,
अमूमन निराली है।
फ़टे हाल सुरत में,
यही इनकी निशानी है।
एक कवि की तो,
बस यही कहानी है।

अशोक प्रियदर्शी
प्रा० वि० परतिया टोला मोबैया
बायसी पूर्णियां
बिहार 

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