जीवन के रंग-पंकज कुमार

जीवन के रंग 

इस रंग बिरंगी दुनिया में ,
जीवन का रंग अब कैसा हो ,
दौलत-शोहरत , झूठे ओहदे
जीवन का रंग क्या ऐसा हो।

जिसमे दौलत या पैसा हो
ना अपना हो बस सपना हो ,
हम भूल जाए रिश्ते नाते
जीवन का रंग क्या ऐसा हो ।

हम भूल गए बचपन के दिन
माँ रोती थी हमें देखे बिन,
पापा ने सिखाया अच्छे गुण
क्या आज हमें कुछ याद नहीं ।

जीवन में घर का प्यार नहीं
मां-पापा है पर पास नहीं ,
भाई-बहन सब दूर हमसे
जीवन में कुछ भी अपना नहीं।

जब पता हमें ये सच्चाई
जीवन में खुशियाँ घर से आई,
हम भूल गए क्यों खुशियों को
माता – पिता सब रिश्तों को ।

हम सोचे जरा संभलने की
आज है दिन कुछ करने की,
मिल जाए अगर सब एक साथ
जीवन में हो खुशियाँ बहार।

अब आज हमें यह कहना है
हमें साथ साथ अब रहना है,
सबकी खुशियों के जैसा हो
जीवन का रंग बस ऐसा हो ।

पंकज कुमार
प्रा. वि. सुर्यापुर
अररिया

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