आओ सरकारी स्कूल चलें
बाबूजी के बटुए मे है कितना पैसा?
इस बात से जहाँ कोई न फर्क पड़े
मुफ्त मे पुस्तक मुफ्त में कपड़ा
शिक्षा जहाँ सबको मुफ्त मिले
ओओ सरकारी स्कूल चलें।
माँ के ठंडे चूल्हे में
न जाने कब तक आग लगेगी?
इस फिकर को ढंडे बस्ते मे रखकर
गरमा गरम ताजा पोषाहार चखने
मध्याह्न भोजन को छककर जमने
आओ सरकारी स्कूल चलेंं।
नीले नीले आसमानी गणवेश में
नन्हे नन्हे पग भरते बच्चे जहाँ
साइकिल से ही आसमान के जेट तक पहुंचने के हौसले की उड़ान रखते हैं
ऐसे खूबसूरत सपने और सुनहरे पंख देने वाले स्कूल चलें
आओ सरकारी स्कूल चलें।
जानेंगे जहाँ संस्कृतियों को
रूबरु होंगे स्थापथ्यों से
राजगीर गया के बौद्ध विहारों से
अंग पावापुरी सासाराम से
दरभंगा के नरगौना महलों की सैर करें
ऐसे परिभ्रमण और सारस्वती यात्राओं का आनंद लेने
आओ सरकारी स्कूल चलें।
खेल खेल में ही सिखाला दें सबकुछ
भाषा विज्ञान गणित पर्यावरण
कठिन विषय रहा न अब कुछ
ऐसे प्रतिभाशाली गुरू द्रोण चाणक्य राधा कृष्णन कलाम जैसे गरूओं से सीखने
आओ सरकारी स्कूल चलें।
जाति का जहाँ कोई न झगड़ा
धर्म का जहाँ कोई न रगड़ा
राम रहीम कलुआ गोरका
नमका भुटका मोटका पतरका
जहाँ साथ पढ़े साथ बढ़े
सब एक दूजे के साथ बढे
आओ सरकारी स्कूल चलें।
जहाँ वर्ण और वर्ग नहीं होता
कक्षा केवल पहली दूसरी तिसरी चौथी
पाँचवी छठी से बाहरवीं तक होता
ऐसे आनंदायी वातावरण में
भारत का स्वर्णिम भविष्य लिखें
आओ सरकारी स्कूल चलें
आओ सरकारी स्कूल चलेंं।
कुमुद “अनुन्जया”
भागलपुर (बिहार)