शरद पूर्णिमा – रूचिका

  शरद पूर्णिमा का सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता चाँद। दूधिया रोशनी बिखेरता प्रेम चाँदनी संग दिलोंजान से करता। घटता बढ़ता चाँद वक़्त परिवर्तन की सुंदर कहानी कहता। शीतलता चाँद…

मनहरण घनाक्षरी- जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’

दिन भर काम करे, कभी न आराम करे, अकेली सुबह शाम, भोजन बनाती हो। हमें विद्यालय भेज, कपड़े बर्तन धोती, काम से फुर्सत नहीं, खाना कब खाती हो? जब नहीं…

सत्प्रवृत्ति के सोपान – अमरनाथ त्रिवेदी

कर्त्तव्य हमारे  ऐसे  हों नित , जहाँ मन की मलिनता न छाए। सदुपयोग, अधिकार का ऐसे करें , जहाँ अहंकार तनिक भी न आए। परहित धर्म कभी न छोड़ें ,…

कहतीं रहीं अम्मा – स्नेहलता द्विवेदी ‘आर्या’

  तुम हाथ साफ रखना, यह कहतीं रहीं अम्मा, स्नान- ध्यान करना, कहतीं रहीं अम्मा। अब आ गया जमाना हम भूल गए थे, वो सब बड़ी शिद्दत से, कहतीं रहीं…

चिड़िया रानी – रूचिका

चूँ चूँ करती चिड़िया आती दाना-पानी कहाँ से लाती। क्या खाती और क्या वह पीती, बोलो बोलो कैसे वह जीती।। खेतों में, खलिहानों में, हरे-भरे मैदानों में, घर के आँगन,…

मम्मी दुनिया से निराली है – अमरनाथ त्रिवेदी

दुनिया चाहे कुछ भी कह ले मम्मी  ही  हमारी जान है। हर सुख-दुःख में साथ वह देती , मम्मी  ही  हमारी  पहचान है।। मम्मी  की  बात मीठी होती, लगती  हमें …