दहेज लोभी
रिश्ते की करने को बात,
विनम्र भाव से बेटी का बाप।
कई उम्मीदें लेकर साथ,
पहुँचे बेटे वाले के द्वार।।
बेटी पर पूछे कई सवाल,
रंग रूप और चाल चलन की बात।
फिर पूछा पिता की औकात,
क्या और कितना दोगे आप?
मैं तो ठहरा गरीब इंसान,
कर रहा हूँ कन्या दान
दे रहा हूँ जिगर का टुकड़ा,
मुस्कुराता हुआ चांद सा मुखड़ा।।
बेटा बेटी हैं एक समान,
पढ़ाया बेटी को, बेटे के समान।
दिए हैं अच्छे संस्कार,
बढ़ाएगी घर का मान सम्मान।।
पढ़ाई से हमें क्या लेना देना,
हमें न नौकरी करवानी है।
चाहिए नहीं अफसर बिटिया,
घर की जिम्मेदारी ही तो संभालनी है।।
कितने हो आप सामर्थ्यवान,
पहले डालो इस पर प्रकाश।
दहेज में क्या दे सकते हो,
तब करेंगें शादी की बात।।
पढ़े लिखे इंसान हो आप,
फिर भी करते दहेज की बात!
सिर्फ चंद रुपयों के लिए,
बेच रहे हो बेटा आप?
कितने शर्म की है बात,
लगा रहे हो किसका दाम?
बेटे को पढ़ाने का
या जन्म से खर्च उठाने का!
माफ़ कीजिएगा मुझे श्रीमान,
बेटी मेरी नहीं कोई सामान।
दहेज लोभी है जो इंसान,
वो क्या करेगा बेटी का सम्मान?
बोझ नहीं है पिता पर बेटी,
पिता का गौरव है बेटी।
आंगन में रौनक छा जाती,
जिस घर में बेटी है आती।।
स्वाति सौरभ
आदर्श मध्य विद्यालय मीरगंज
आरा नगर, भोजपुर