डमरू वाला
रूप सुहावन ऐसा देखा
“डमरू वाला” जैसा देखा
कर त्रिशूल गले में नाग
प्रस्फुटित अंग भी लगाए आग
तीनों लोक में इसकी शान
ऐसे हैं इनकी पहचान
दु:ख पीड़ा को सहन करे
भंग धतूरा ग्रहण करे
इनका सब करे गुणगान
सब देवों में देव महान
इनके दो हैं सूत जहान
दोनों एक से एक महान
कोई स्वर्ग चरणों में पाये
दूजा को अग्रिम पूजा भाये
इनके घर न कोई धरातल
पूजे हर घर बेल के पातल
फूलों में शोभे उनको धतूरा
कभी श्याम वर्ण कभी है गोरा
माता पार्वती जग के सती
हरहर महादेव इनके पति
हैं ऐसा यह मेरे दाता
जो माँगे वह सब है पाता
खुद को भी न रहे ख्याल
ऐसा है वह जग के कृपाल
संग मिल दोनों अर्धान्गिनी कहलाये
दिया ऐसा वर जो खुद न सम्भाले
समुंद्र मंथन में नागों को खींचे
हलाहल विष कंठों में सींचे।
भोला प्रसाद शर्मा
पूर्णिया (बिहार)