रूप सुहावन ऐसा देखा “डमरू वाला” जैसा देखा कर त्रिशूल गले में नाग प्रस्फुटित अंग भी लगाए आग तीनों लोक में इसकी शान ऐसे हैं इनकी पहचान दु:ख पीड़ा को सहन करे भंग धतूरा ग्रहण करे इनका सब करे गुणगान सब देवों में देव महान इनके दो हैं सूत जहान दोनों एक से एक महान कोई स्वर्ग चरणों में पाये दूजा को अग्रिम पूजा भाये इनके घर न कोई धरातल पूजे हर घर बेल के पातल फूलों में शोभे उनको धतूरा कभी श्याम वर्ण कभी है गोरा माता पार्वती जग के सती हरहर महादेव इनके पति हैं ऐसा यह मेरे दाता जो माँगे वह सब है पाता खुद को भी न रहे ख्याल ऐसा है वह जग के कृपाल संग मिल दोनों अर्धान्गिनी कहलाये दिया ऐसा वर जो खुद न सम्भाले समुंद्र मंथन में नागों को खींचे हलाहल विष कंठों में सींचे।
आ जा डमरू वाले आ जा बैल सवारी करके आ जा। डम डम डम जब डमरू बोले बंद हृदय के पट को खोले। बाबा भोले शंकर आ जा अपनी डमरू आज बजा जा------- मन मेरा है बना शिवाला रहते इसमें डमरू वाला। इन नैनों की प्यास बुझा जा भोले डमरू…
हे महादेव, त्रिकालदर्शी, शंभूनाथ महेश्वर । सुमिरन करे, करें ध्यान तेरा दिन रात और चारों पहर । हे अर्धचंद्र के मुकुटधारी , नाग का कंठहार धारण किया। डमरू त्रिशूल हाथों में शोभित, गंगा को जटा में समा लिया। हे पार्वती पति, शक्ति के शिव , हे गौरीशंकर, भोलेनाथ । तेरी…
चाचा नेहरू निश्छल निर्मल स्वर्ण धरा पर, कोमल संग मुस्कान लिए, कच्ची मिट्टी सा मन है जिसका, भविष्य जिसके भाल है, नव निर्माण का जो आधार, जिसके मन भांप बजाते थे डमरू, बालमन में बसते थे ऐसे चाचा नेहरू। बहुत सारे दिवस है आते, बालमन को कोई पहचाने, मासूमियत भरी…