ग्रमीण सड़क-विजय सिंह नीलकण्ठ

ग्रामीण सड़क

जब पहले ग्रामीण क्षेत्र में
न होती थी सड़कें
कीचड़ के संग खेला करते
सब बच्चे लड़की लड़के।
दुर्घटनाएँ न होती थी
न था रोना धोना
जब से सड़क बनी गाँव में
बेचना आसान हुआ अन्न रूपी सोना।
लेकिन सबसे बड़ी समस्या
सड़कों पर कई ठोकर बने
मनमानी करके ग्रामवासी
सड़कों पर ठोकर किए खड़े।
ऐसा ऊँचा ठोकर होता
चालक देख जिसे है रोता
दुर्घटना के डर से चालक
ठोकर पर है संतुलन खोता।
जब ठोकर से बचकर निकले
मवेशी से भी पाला पड़ता
जिससे बचना मुश्किल हो
जो खड़ा हमेशा झगड़ता रहता।
गर इसकी शिकायत होती
उल्टे डाँट सुननी पड़ती
अंधे बहरे तक कह देते
जिसे कटु बात की परवाह न होती।
इसीलिए ग्रामीण क्षेत्र की
सड़कों पर न ठोकर डालो
न बांध मवेशी सड़कों पर
दूजो का भी जान बचा लो।

विजय सिंह नीलकण्ठ
सदस्य टीओबी टीम

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