गुरुजी का ज्ञानदान-सुरेश कुमार गौरव

Suresh kumar

गुरुजी का ज्ञानदान

बचपन में गुरुजी ने सिखलाया
अनुशासन का खूब पाठ पढ़ाया।

कहते बापूजी के तीन थे बंदर
सुनो दिनेश, महेश, रमेश व चंदर।

पहला कहता बुरा मत बोलो
दूसरा कहता बुरा मत देखो।

तीसरा कहता बुरा मत सुनो
तीनों से कुछ अच्छा सीखो।

जब होती मैडम जी की कक्षा
हमें लगता तब बहुत ही अच्छा।

वो कहती बच्चों सुनो कहानी
मुझे भी कहती थी मेरी नानी।

कूड़ा कुड़े-दान में ही डालो
इधर उधर न इसे उछालो।

सदा सफाई को तुम अपनाओ
सुंदर गांव और शहर बनाओ।

कहती जिस कक्षा में हो कूड़ा
वहां रहता मन मेरा चिड़-चिड़ा।

कूड़ा भी मानो कहता है हरदम
सांस न फूले सांस लें भरदम।

सदा सफाई में ही सब जीओ
आस-पास कूड़े-दान बनाओ।

मानव जीवन का मिला ये तन है
सदा करें हम अच्छा ये मेरा मन है।

स्वास्थ्य ही सबका अमूल्य धन है
पढ़ने लिखने से बनते अच्छे जन हैं।

हिन्दी है अपनी मां जैसी मातृभाषा
देती सदा कुछ करने की अभिलाषा।

शिक्षा के मंदिर में ज्ञान-दीप जलाएं
वैर, दुश्मनी, ऊंच नीच के भेद मिटाएं।

यहां समय का पालन जब पूरा होवै
जो न समझे वो इस समय को खोवै।

प्रतिदिन पाठ का वाचन है जरुरी
हल्ला शोरगुल करना है गैर जरुरी।

वर्ण और लिपी की सुंदर हो लिखावट
जैसे हो घर गांव गलियों की सजावट।

गणित की भी बूझते खूब पहेलियां
जैसी हों आरी तिरछी गोल जलेबियां।

पृथ्वी गोल, चंदा और सूरज भी है गोल
गुरुजी के खूब अच्छे और सच्चे थे बोल।

आज भी आती हैं सब गुरुओं की यादें
हम सबसे रोज करते थे अटूट वे वादें।

काश! वे दिन और घड़ियां फिर आ जाएं
शिक्षा मंदिर के वे सुहाने दिन लौट आएं।

✍️सुरेश कुमार गौरव

शिक्षक पटना (बिहार
स्वरचित और मौलिक
@सर्वाधिकार सुरक्षित

0 Likes
Spread the love

Leave a Reply