हिन्दुस्तान का किसान
भूख मिटाते लोगों का जो
उनकी कहानी सुनाता हूँ,
फसल उगाते धरती से,
मैं बात उन्हीं की बताता हूँ।
मार्तण्ड के लाली से पहले
खाट छोड़ उठ जाते हैं,
खिला-पिलाकर बैलों को,
अपने खेतों में ले जाते हैं।
आलस की तो बात न पूछो,
उन्हें भय भी नहीं सताते,
कठिन परिश्रम होने पर भी,
मन की पीड़ा नहीं बताते।
गर धूप सताये तन में तो
जीवट रूप दिखाते हैं,
तुषार की कंपकपी रातों में
खेतों में हीं सो जाते हैं।
लहलहाती फसलों को देख
नई उम्मीद लगाते हैं,
परिश्रम का फल मीठा होगा,
परिजनों को बतलाते हैं।
भूखे-प्यासे नंगे पाँव जब
फसल उगा घर लाते हैं,
खुशियाँ बस खुशियाँ चेहरों पर
सबके देखे जाते हैं।
प्रकृति और मौसम भी इनको,
हाय बहुत तड़पाते हैं,
अन्नदाता होकर भी जब ये,
अन्न को तरस जाते हैं।
आखिर इनका चिर सपना,
होगा कब साकार?
कब तक सर पर झूलेगी
गरीबी की यह मार?
पूछता कवि ‘निराला’ और
पूछता हिन्दुस्तान है,
हे देशवासियों जरा सुन लो
इनका नाम किसान है।
नरेश कुमार निराला
प्राथमिक विद्यालय केवला
अंचल- छातापुर,सुपौल, बिहार
9113793549