सूरज और जल की चेतावनी
सुबह, सुबह !
सूरज अपने कर्मपथ को चला
कि मार्ग में एक खंडहर मिला
कभी जिसे अपनी भव्यता का गुमान था
झील का आकार लेता
एक जलभंडार शनैः शनैः
उसे लीलने को तैयार था
सूरज थोड़ा और पास आया
जल को अपने पाले में किया
अब दोनों एक ही सुर में
खंडहर से कुछ कह रहे
शायद उसे उसकी औकात बता रहें
कि देखो! तुझे मानव ने बनाया
पर वो इस धरा पे न रह पाया
तुम भी कितने जीर्ण-शीर्ण हो गये
वास्तु का अवशेष ही रह गये
आगे शेष भी न रह पाओगे
तू सदा किसी के काम न आओगे
पंचतत्व में विलीन हो जाओगे
हमें देखो!
हम पंचतत्व के भाग, सृष्टि-रचना स्रोत है
हम ही अनश्वर और हम ही शाश्वत है
हम अनादि काल के, अनंतकाल तक रहेंगे
प्रकाश, ताप, और जल से
सृष्टि को पुष्पित-पल्लवित करेंगे
किन्तु सुनो!
मानव यदि अपनी हद में न रहा
जो नित्य सृष्टि संतुलन बिगाड़ रहा
तो हम प्रकोप भी बन जायेंगे
जल-प्रलय, अग्निकाण्ड, सूखा-अकाल
जैसे संकट लाएंगे
पहले भी पाठ पढ़ाया है
आगे भी पाठ पढ़ाएंगे
आगे भी पाठ पढ़ाएंगे
✍️विनय कुमार वैश्कियार
आदर्श मध्य विद्यालय, अईमा
खिजरसराय ( गया )