उन्मुक्त गगन
श्रृष्टि के सभी प्राणियों को भाता है
स्वतंत्र रहना,
पशु हो या पक्षी सभी चाहते हैं
उन्मुक्त गगन में रहना।
इसलिए तुम,
उड़ लेने दो बेटियों को भी उन्मुक्त गगन में।
ये किसी भी क्षेत्र में बेटों से कम नहीं,
क्यों कैद कर रखना चाहते हो इन्हें,
रंग बिरंगी सतरंगी दुनियाँ में घूम लेने दो।
मन की सारी इच्छाएं, आकांक्षाएं, उम्मीदों को पूरी कर लेने दो।
खुली हवा में जुल्फों को लहरा लेने दो
बाली उमर में सखियों और दोस्तों के संग खुशियों के गीत गा लेने दो
उड़ लेने दो बेटियों को उन्मुक्त गगन में।
क्यों समझते हो इनको बोझ
वह हर परिस्थितियों में अपनी
जिम्मेदारी निभाती आई है
काम धाम सब पूरे करके
सबको खिलाते आई है।
बचा खुचा खाना स्वयं खाकर,
होठों पर मुस्कान वह लाई है।
कहने को है अपनी लेकिन,
“बेटी पराई” यही तो सुनते आई है।
बेटी है श्रृष्टि का मूल आधार।
क्यों करते हो इनपर अत्याचार?
कोमल नन्हीं से कलियाँ हैं ये,
प्यार की मीठी बोलियाँ हैं ये,
इनके जज्बातों को खुलकर,
बाहर आ जाने दो ।
घूंघट में दबकर क्यों रहे यह,
बेटी बनकर सालीनता से रह लेने दो।
मत बोझ डालो इनपर सारे काम काज के,
हाथ बटाकर उन्हें थोड़ी राहत की
सांस लेने दो।
उन्हें नैतिक शिक्षा, साहस शौर्य की कथा सुनाकर,
उन्हें परिस्थितियों का सामना डटकर कर लेने दो।
देश विदेश में नाम रौशन कर रही है ये,
इन्हें पढ लिखकर आसमान छू लेने दो ।
हाँ, लेकिन मन बड़ा चंचल होता है,
इसे कभी उन्मुक्त नहीं रखना,
नहीं तो हवा से तीव्र है इसका वेग।
पतन के राह पर शीघ्र ले जाता है।
यह बात उसे हमेशा बताओ,
सदाचार की राह पकड़ कर,
ब्रह्मचर्य का पालन कर,
स्वयं में प्रतिष्ठित हो लेने दो ।
उड़ लेने दो बेटियों को उन्मुक्त गगन में।
स्वरचित :-
मनु कुमारी
प्रखण्ड शिक्षिका
पूर्णियाँ बिहार