उम्र जो थी
चुनने की भविष्य
एक वह
चुनता रहा कबाड़
बीनता रहा कचरा
इतर किसी
सुगंध-दुर्गंध के
भेद के
भांति किसी कर्मठ
कर्मयोगी के।
आशंका- अनुशंसा
या किसी
संशय के विपरीत
बोझ तले
ढोता रहा भार
कर्त्तव्य का।
मार्ग में उसके दैनिक
पगडंडी जो थी कच्ची
रुकता था
रोज वह
भरे शैवाल से
समीप एक
पोखर के
दिवस कोई
था शायदा
बच्चों का
ठीक वहीं
ठिठक कर वह
अपलक कुछ
रहा देखता।
तभी अचानक
न छूटने वाले
बोझ कर्त्तव्य के
उतारता कंधों से,
धीमी स्वर में
वह अपने
कुछ मधुर
गुनगुनाने लगा।
धुन थी वह अनुपम
गान राष्ट्र की
आ रही थी
छनकर अहले,
पगडंडी के आखिरी
विद्या के किसी
आलय से।
रह चुका था
छात्र जिसका वह
ढो चुका था
बोझ जिसके
बस्ते का,
पीठ पर अपने
बोझ कर्त्तव्य के
आने से पहले।
शिल्पी
मध्य विद्यालय सैनो जगदीशपुर, भागलपुर