ओ री गोरैया
सुन री गोरैया…
मेरी सोन चिरैया!
सदा से मुझे तू भायी है
जब जब रोया हंसायी है…
तेरा फुदकना
तेरा चहकना
घर आंगन की शान है
तू ही सदियों से
नन्हे मुन्नों की जान है!
शहरीकरण से
तू बिल्कुल परेशान है?
खत्म हुए जब आंगन
खत्म हुआ तेरा आगमन भी!
बन रहे कंक्रीट के जंगल और
खत्म कर दिए हमने पेड़ भी,
उजड़े खेत खलिहान मेड़ भी!
बहुमंजिली इमारतों ने तेरा घर छीना
मुश्किल हुआ तेरा जीना!
तो छिन गई बच्चों की खुशियां
रूठ गईं नन्ही सब मुनिया..
तेरे संरक्षण को कुछ करना होगा
सबका सहयोग लेकर
पेड़ों की कटाई रोकना होगा।
फिर बालकनी में डेरा तेरा,
हम-सब करेंगे तैयार
मिलजुलकर सबने किया है विचार!
दाना पानी का भी करेंगे प्रबंध
लिखा रहे हैं बच्चों को निबंध।
तुम्हें तुम्हारा प्राकृतिक आवास
लौटाएंगे
तो बच्चे फिर से खिलखिलाएंगे
सिर्फ गोरैया दिवस नहीं
सच में तुझे मनाएंगे
वापस तुझको लाएंगे
घर आंगन को अपने फिर से
खुशियों से महकाएंगे!
© ✍️नवाब मंजूर
प्रधानाध्यापक,
उमवि भलुआ शंकरडीह तरैया (सारण