वो होली का अंदाज़ कहाँ -अवनीश कुमार

अब वो फनकार कहाँ, अब वो रंगों का चटकार कहाँ, अब वो अल्हड़-सी शरारतें कहाँ, अब वो फाल्गुन का अंदाज़ कहाँ? अब वो ढोल-मंजीरा सजी शाम कहाँ, सजी महफ़िल में…

दूर तक चलते हुए -शिल्पी

घर की ओर लौटता आदमी होता नहीं कभी खाली हाथ हथेलियों की लकीरों संग लौटती हैं अक्सर उसके अभिलाषाएं, उम्मीद, सुकून और थोड़ी निराशा घर लौटते उसके लकदक कदम छोड़ते…