दीप जलाएँ- अमरनाथ त्रिवेदी

Amarnath Trivedi

मिलकर  ऐसे  दीप   सजाएँ,
हर कोने  के  तम  को  हर  लें।
सब  मिलकर  ऐसे   दीप जलाएँ,
हर  खुशियों  को  हम भर-भर लें।।

वर्ष बाद फिर आई दिवाली,
अपने खुशियों को हम खूब बटाएँ।
एक  साल  से पड़ी  गंदगी को,
सब मिल  अति  शीघ्र हटाएँ।।

कार्तिक अमावस  के दिन,
यह   घोर  अंधेरा हरती।
जीवन में  खुशियाँ लाती हैं,
यह जीवन धन्य भी करती।।

साल  भर  से  हुई  प्रतीक्षा,
आज वह  शुभ दिन है आया।
धरती से आकाश  चमन तक,
प्रकाश  ही  प्रकाश   फैलाया।।

खेलें कूदें  मस्ती  में  हम,
घर से बाहर पटाखा चलाएँ।
प्रदूषण  वाले   पटाखे   से,
हम   निश्चित   दूरी   बनाएँ।।

हम बच्चों के  लिए खास दिन,
शुभ   है   कितना   आया।
मन में कितनी खुशी है  हमको ,
आज  घर- घर  द्वार  सजाया।।

इस  पावन प्रकाश  पर्व की,
मकसद  को  हम  जानें।
इसके पीछे  तर्क  हैं  कितने,
हम   भी  कुछ   पहचानें।।

इस दिन लक्ष्मी  का पूजन होता,
घर  आँगन  सब  सज   जाता।
आज सफाई का महत्त्व अधिक है,
यह  जीवन  धन्य  कर  जाता।।

लक्ष्मी   जी  को  भाती है,
सब   जगह की  साफ  सफाई।
वहीं  जाती  हैं  लक्ष्मी जी,
जिस घर आँगन होती चिकनाई।।

भगवान राम अयोध्या  जब  लौटे,
अयोध्या वासी ने घर द्वार सजाया।
उनके  स्वागत  में  सबने,
घर- घर  मंगल  दीप  जलाया।।

हम सब  मिलकर नाचें  गाएँ,
सब खुशियों  से  भर  जाएँ।
धरती  से  नील   गगन  तक,
सब मिल  नव   दीप  जलाएँ।।

अमरनाथ त्रिवेदी
पूर्व प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बैंगरा
प्रखंड- बंदरा, जिला- मुज़फ्फरपुर

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